Monday, November 30, 2009

परिवर्तन


गहन चिंतन में डूबी मै ....
सोचूँ क्या स्थाई और क्या अस्थाई?
दिन बदले रात में, ऋतु ले चार अंगडाई,
नाले बने नदी, जो गिरे समुद्र गहराई।
चंद्र से अमावस पूनम, बेटी बने पराई,
मित्र बने शत्रु तब अपरिचित से संग निभाई।
जीवन मरण में बंधी है यह सृष्टि सारी,
जिसे देखूं मै बनकर असहाई.

शोक न कर, तू आगे आगे बढे चल ....
यही नियम है, यही रहेगा, काल चक्र रहेगा घूमता,
तभी तो शम्भू नष्ट करता, जिसे ब्रह्मा मनन से बनाता।
बिछोह न हो तो कैसा प्रेम, दुःख बिन क्या सुख रुचेगा?
यह संसार न सोये रात में, तो दिन में कौन जागेगा?
दीपावली न होगी हर अमावास में , न ईद का चाँद रहेगा।
फूल न गिरे सूखकर, तो बीज कहाँ से निकलेगा?

पग न रुकें बस आज तुम्हारे ....
मुट्ठी खोलो, अतीत को छोडो, देखो आँखें खोलकर,
नई है उषा, नया है रास्ता, उठ जाओ चाहे ऊंघकर।
नयन रोते जिस दुःख पर तुम्हारे, वही बनाये जीवन सुखकर,
हृदय की वेदना को स्वीकारो हर्ष से, शेष होगा संताप वहीँ पर।
शूल बनेंगे फूल मन के, नए भविष्य को आता देखकर,
वर्तमान में बांधो हिम्मत उस एक इश्वर का स्मरण कर।
बस केवल इश्वर का स्मरण कर ....

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