इसी गगन के किसी फलक से झांकती तो हो,
पर नज़र क्यों नहीं आती कभी?
पूरा संसार है आज मेरा कहने को,
पर हर सांस कुछ अधूरी-सी है कहीं.
याद करती हूँ तुम्हें तो भर आती है आँखें,
मद्धम मद्धम गत हो जाती ये नसें.
चेहरे तो कई आये इस दिल को संभा लने,
पर न पाया उनमें तुम्हें कभी भी.
गौर किया तो हर रिश्ता निकला सौ दे का,
लेन-देन से न उबर पाए हम अब भी.
चाहे उम्मीदों का हो सौदा, हो सौ दा प्यार का,
भूल रही हूँ खुद को, इन सब में अब कहीं.
ढूंढती हूँ तुम्हें हर तरफ, हर शक्ल में,
थक गयी दुनियादारी निभा ने में.
इच्छा है एक बार फिर तुझ ही से जन जाऊं,
फिर चाहे माँ! तेरी गोद में सदा के लिए सो जाऊं.
पर नज़र क्यों नहीं आती कभी?
पूरा संसार है आज मेरा कहने को,
पर हर सांस कुछ अधूरी-सी है कहीं.
याद करती हूँ तुम्हें तो भर आती है आँखें,
मद्धम मद्धम गत हो जाती ये नसें.
चेहरे तो कई आये इस दिल को संभा
पर न पाया उनमें तुम्हें कभी भी.
गौर किया तो हर रिश्ता निकला सौ
लेन-देन से न उबर पाए हम अब
चाहे उम्मीदों का हो सौदा, हो सौ
भूल रही हूँ खुद को, इन सब में अब कहीं.
ढूंढती हूँ तुम्हें हर तरफ, हर
थक गयी दुनियादारी निभा
इच्छा है एक बार फिर तुझ ही से जन
फिर चाहे माँ! तेरी गोद में सदा के लिए सो जाऊं.
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