K~,
This poem was composed by your Dadu when you were 10 months old. He had unfortunately lost Dida ......... almost 2 months before you were born.
He always addresses you as chukchuki. Although you might not prefer to be called by this name, it has taken a liking to his bengali instincts and he refuses to call you anything else:-)
मेरी प्यारी चुकचुकी,
मन के टूटे आँगन में, जब बगिया सारी सूख चली,
न जाने इस मरुभूमि में कब सुंदर सी कली खिली।
संयोग-वियोग का खेल हुआ, उपवन उजड़ा बिछडा माली,
व्यथित हुए तन-मन में आई फिर उमंग भरने वाली।
कौन जगत से आई हो तुम? ऐ! पथिक, अविरल पथ की,
क्या माँ के आँचल की शोभा, या हो नयानमणि सबकी।
पर्वत की सरिता सी चंचल, जल तरंग सी किलकारी,
पल में हंसना, फिर रोना यूँ, धुप - छाँव की खिल्वारी।
नन्ही कली सी लगती हो पर, मन कहता बोलूँ तितली,
मेघा बोलूँ या स्वाती फिर, नील गगन सी श्यामली।
किस पंछी की उपमा दूँ, या संज्ञा दूँ फूलों की,
सृष्टि की तुम अनुपम रचना, पर हो कृति विधाता की।
नन्हे नन्हे हाथों से और कोमल मुख के भावों से,
अभिनव दंग है समझाने का, इंगित और इशारों से।
ठुमक ठुमक कर चलना सीखा, जैसे हो मदमाती चाल,
कब तुतला कर बोलोगी, अपनी शब्दों का मायाजाल।
प्रथम बसंत की बेला में, देता हूँ आशीष तुम्हें,
निश्छल, निर्मल बनी रहो, परपंच न छुए कभी तुम्हें।
आए हैं सब प्यार बांटने, ले लो चाहे जितना प्यार,
नन्हे नन्हे हाथों से क्या बाँध सकोगी यह उपहार?
- स्नेहाशीष दादू
Very Touching Poem...How is Uncle? Do give my Namastes
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